Monday, April 15, 2013

याद (जुड़ शीतल/सिरुआ)

आय जुड़ शीतल माने सिरुआ पाबनि थिक. हमरा गाम में एकरा सिरुआ-विसुआ सेहो कहल जायत छै, पता नहीं किये. आस परोस के गाम में केवल सिरुआ ही कहै छै, ते ओ सब कने मजाको करय. बुझल रहैत छल जे सिरुआ छियई, मुदा जखने भिनसरे में माय या दादी ठंढा-ठंडा घैल  के राखल जल माथा पर द  दे, ते हम अकचका जायत रही. सामान्यतया हमर निन ओतेक जल्दी नहीं टुटैत रहै, तें हरबरा जायत रही. तखन बुझी जे ओह, आय ते सिरुआ रहै ने. बैसका पावनि रहै, भिनसरे बरी भात बनि जाय. माय कहे-जो-जो गाछी में पहिने गाछ सब के ज़ुरा के आबि जो. हमरा ते गाछी कम्मे छल मुदा जेह छल तकरो जुराबे लेल जायत रही. कमाल के सोच छल. सब लोक आय के दिन गाछी में गाछ-ब्रिच्छ के जुरबई लेल जायत छल.

एकटा बात आर, आय के दिन लोक सब गाम में घैला दान सेहो करैत छल. ओही घैला में भोर सांझ स्वच्छ जल भरल जायत छल, पुरे महिना. बैसाख के गर्मी में पानि दान के अलगे महत्व छै. तुलसी के पौधा में भी छोटका घैला या फुच्ची  में एकट1 भूर क क ओही में कुश द क जल बूँद-बूँद खसय लेल देल जायत छल.

चैनपुर आ आसपास के गाम में शिकार खेलय के परंपरा सेहो छल. कतेक दिन पहिनहि से शिकारी सब अपन अस्त्र-शस्त्र सब पिजाबे लागैत रहे. गामक जंगल जेना बरदोखैर, कुरनमा, खैरबनी, इत्यादि इत्यादि जगह पर जाय शिकार करय लेल. शिकार करय जोग  जानवर नहि छल ओहि समय में आ नहि ओहेन शिकारी, मुदा अपन अपन कुकुर के सन्ग ल क सब कोशिस करय जे कम से कम एकटा खरिहा के त शिकार भ जाय. खरिहा के मौस बड्ड स्वादिष्ट मानल जायत छल.

मिथिला में एहि दिन ढेरों जगह धुरखेल सेहो खेलल जायत ऐछ. हमरा पड़ोस में ऐछ एकटा गाम बघवा. ओही ठIम खुब मचा के धुरखेल होयत ऐछ एही दिन.

आब यादो नहीं ऐछ जे कतेक दिन पहिने माय जुरेने रहे सिरुआ के दिन. ओतेक दिन पहिने के जुड़ाबय के अहसास एखनो भ रहल ऐछ. परदेस में रहिके बाद त यादे क क अनुभव करय परैत छै. की करबे, बरी-भात खा लेलहू त मोन के बुझा देलहु जे भ गेल सिरुआ आ जुड़ शीतल..................

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