Thursday, May 23, 2013

बाबा धाम

कुमोद भैया अपन बेटा के उपनयन करय के सोचलैथ आ विचार भेलैन जे बाबा धाम में इ यज्ञ कैल जाय. हमरो नोत भेटल. हमरा बड्ड प्रसन्नता भेटल जे  शायद आब बाबा के बुलाबा आबि गेल ऐछ. गाम में कहल जायत छै जे जा धरि बाबा नहि बजेतौ ता धरि बाबा के नगरिया नहि जा सकब. एतेक ट1 के उमर में दू बेर देवघर जाय के मौका भेटल छल. पहिल बेर त हम लगभग १२ बरस के रही. ओही समय में हम अपन कक्का के संग दसहरा के समय में गेल रही. कने-कने याद ऐछ, मंदिर के गेट धरी गेल रही, मुदा पूजा नहीं क सकल रही, किये त बड्ड भीड रहैक. दोसर बेर कुनु परीक्षा देबय लेल गेल रही, ओही बेर एतेक समय नहीं छल वा इ कही जे समय नहीं निकाल सकलहु बाबा के पूजा के लेल. एही बेर त सोचि लेलहू जे इ मौका त हम नहि छोरब. बाबा के दर्शन त करबे करब. पूर्व एक्सप्रेस से विदा भेलहु आ फेर पहुँच गेलहु बाबा धाम. कुमोद भैया हमर सबहक आ अन्य आगंतुक सब के रहय के इंतज़ाम बाबा के मंदिर के लग में केने रहैथ. ठीक-ठाक आवास छल. अगिला दिन भोरे विचार भेल बाबा के पूजा करय के. स्नान केलहु आ एकटा गमछा लपेट के चललहू पूजा के लेल. मुदा इ की देखय छि, उमरल भीड, कतेक लोक, अथाह समुद्र जकाँ. संग में श्रीमती जी सेहो रहैथ, तें, हिम्मत आरो जबाब द देलक. बड्ड पैघ लाइने लागल छल आ उम्मीद नहीं छल जे आय फेर पूजा क सकब. पनडा सबहक सहयोग लेबाक कोशिस केलहु, मुदा सफलता नहीं भेटल. मोंन में हुए, जे एही ठाम आबि जेने  से की हैत, बाबा के मर्जी हेते तखने ने पूजा क सकब. किछु लोक कहे जे जखन आबि गेलहु त पूजा त हेबे करते, बाबा सब नीके कर्थुन. विश्वासे नहीं हुए. बड्ड असमंजस में रही. कनेक काल के बाद कुमोद भैया के पंडितजी हि किछ व्यवस्था केलैथ आ कोहुना मंदिर में हमरा सब के ढूका देलैथ. मंदिर के भीतर त बड्ड अव्यवस्था. एतेक कम जगह में एक संग एतेक भीड. लोक पर लोक खसैय, सम्हारनाय मुश्किल. हमरा त एखनो भरोस नहीं छल. पूजा हैत की नहि , इ त दूर के गप, जां भाइयो जाय त निक्लब कोना. मुदा तखने एकटा रेला आयल आ हमरा सब के आगाँ ठेल देलक आ बुझायल जे कने जगह बनल. कहुना हिम्मत बान्ही कोशिस केलहु आ बाबा लग पहुन्च्लाहू आ जल चढेलाहू बाबा के. बुझा पडल जे कतेक बड़का युद्ध जीत  लेलहू. मोन  में संतोष सेहो भेल जे बाबा अर्जी सुनी लेलक.

एखन त कुनु ख़ास मौसम नहीं छल भीड के, मुदा तखन इ स्थिति छल. सोचे लग्लाहू जे भादव में जे अपन गाम सबहक लोक जायत छैथ बाबाधाम, ओ कोना पूजा करैत हेताह. ओतेक भीड़ में पूजा करने, कफ़न बान्हि युद्ध मैदान में जाय के बराबर ऐछ हमरा लेल. बूढ़ आ बच्चा सब के की हाल होयत हेते, सोचिये टा सकैत छि. देह सिहरी जायत ऐछ कल्पना क क. जां मंदिर के भीतर श्रद्धालु के नियंत्रित कायल जाय त समस्या के समाधान कयल जा सकैत ऐछ. एखन मंदिर के अन्दर कुनु नियंत्रण नहीं ऐछ. जे बलबत्तर, ओकरे राज. पंक्तियों में पाडा सब पाय ल क श्रद्धालु के लेल शोर्ट कट के प्रयास करैत ऐछ. पुलिस के व्यवस्था त ऐछ, मुदा क्रियान्वयन किछ नीक जकाँ भ सकैत ऐछ. भीड़ के नियंत्रण करय लेल पुलिस सोटा बर्साबैत ऐछ, श्रद्धालु पर. इ निक नहीं लागल. ओही क्षेत्र के लोक के त पता छै, मुदा बाहर के लोक के इ बर्दाश्त नहीं भ सकैत छै आ एही से रावणेश्वर बैद्यनाथ के कुव्यवस्था के ख़राब सन्देश जायत बहार के लोक में. झारखण्ड सर्कार जां एही अव्यवस्था के ठीक क लिए त बैद्यनाथ धाम आरो पर्यटक आ श्रद्धालु के आकर्षित क सकत.

दोसर बात, बैद्यनाथ धाम परिसर में त पंडा सबहक अखंड साम्राज्य बुझायत ऐछ. ते कुनु नियम कानून ख़ास प्रभावी नहीं भ रहल ऐछ. हर एक काज के लेल जे मोन  से पैसा मंगेत ऐछ इ पंडा सब. एही से लोक सब के धार्मिक भावना निश्चित रूपें आहात होइत हैत. एही दिश झारखण्ड सरकार के ध्यान देबय पडत.

हम बाबा बासुकी नाथ के पूजा सेहो नीक जकाँ केलहु, ओही ठाम बाबा धाम एहेन भीड नहीं छल. मुदा ओही ठाम भी मंदिर के भीतर वैह हाल छल. अनियंत्रित.

ओना मोटा मोटी बाबाधाम के यात्रा निक रहल आ बाबा के अर्चना क क मोन प्रसन्ना भेल. बाबा वैद्यनाथ सब पर अपन कृपा बनने राखैथ. जय नील कंठ.

2 comments:

  1. सर, मुझे मैथिली आती तो नही है, फिर भी आपका ब्लॉग पढ़ कर समझने का प्रयास किय. सारे शब्दों को समझ तो नही पाया परन्तु उसमे अन्तर्निहित भावनाओं को ठीक ढंग से समझा। बाबा के दरबार में भी बिना जुगाड़ के पूजा नहीं कर पाने की पीड़ा को मैं भी समझ सकता हूँ . फिर भी आपकी यह बात मुझे अच्छी लगी की पूजा तो मन में ही हुई। बाबा के दरबार में जाने का "सौभाग्य" तो मुझे भी मिला था . मैं 1997 में अपने माता जी के साथ गया था। आप ज्यादा सौभाग्यशाली थे सर की आप को तो मन में भी पूजा करने का अवसर प्राप्त हुआ था . मैं इतना सौभाग्यशाली नही था . मंदिर के पवित्र प्रांगन में ही एक भक्त गिरता है और उसी के शरीर पर चढ़ कर कितने "भक्त" बाबा की पूजा किये और मेरा मन इसी सवाल में उलझा रह गया कि बाबा की सही अर्थों में पूजा कौन कर कर पाया था वो भक्त जो भीड़ में अपने को नियंत्रित नहीं कर पाने के कारण गिर पड़ा था या वो "भक्त" लोग जो उस के शरीर पे चढ़ कर अपना परलोक सुधारने के चक्कर में गिरे हुए भक्त को सीधे "बाबा' के पास ही पंहुचा दिए? मेरा मन तो उस घटना को याद कर आज भी मन में ही पूजा और प्रार्थना करने लगता है . बोलिए बाबा बैजनाथ की ...जय !!!

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  2. आपकी सारगर्भित टिपण्णी काफी अच्छी लगी. आप सहमत तो होंगे हि की यदि इस मंदिर में भी वैष्णो देवी मंदिर के तर्ज पर दर्शन की व्यवस्था हो जाय तो भक्तगणों के लिए बड़ी राहत की बात होगी. नहीं तो हमारे जैसे भक्तों के लिए तो श्हयद मन की हि पूजा श्रेयस्कर होगी.

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